सोमवार, 9 जनवरी 2012

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ यानि मीडिया ...


लोकतंत्र का  चौथा स्तम्भ यानि मीडिया, सुनकर ही हमे ऐसा लगता है " एक जिम्मेदारी " | पर क्या हमारा मीडिया उतना ही जिम्मेदार है ?? सच्चाई को सामने लेन में, जितना की हम सुनने को उत्साहित रहते है ?? मुझे तो ऐसा लगता है की मीडिया समाज के प्रति पूरी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है , पर सवाल ये है की क्या मैं सच बोल रही हूँ ?? आज, जब कभी हम न्यूज़ चैनल देखते है तो हम न्यूज़ से ज्यादा विज्ञापन ही देखते है | और सच ये है की न्यूज़ तो विज्ञापन के कारण ही दिखाया जाता है |

टी . आर .पी की जो मांग है, वो न्यूज़ के भविष्य के लिए बहुत हानिकारक है | क्योंकि टी . आर .पी तो केवल उत्तेजना पैदा करने वाली खबरे ही दिला सकती है | जिससे आम जनता को केवल  हत्या , समाजिक दुष्कर्म या किसी बड़े सेलिब्रेटी की ही खबरे मिलेगी | और जो देश की मुख्य खबरे है, वो टी . आर .पी नहीं दिला पाने के कारण पीछे रह जाती है और जनता खबरों के नाम पर केवल मनोरंजन ही पाती है | हमारा मीडिया पूरी तरह व्यवसाय सा बन गया है , जहाँ ख़बरों का उद्देश्य अधिक से अधिक धनार्जन करना है |

और आजकल मीडिया की कभी कोशिश ही नहीं होती की वो सच्ची और अच्छी जानकारी दे, वो तो केवल समाचार को सनसनी खेज बनाना चाहती है | क्योंकि लोग यही तो सुनना चाहते है , मीडिया की स्पष्ठ्वादिता पर कई सवाल उठते है , जिनमे ये सवाल प्रमुख है की क्या मीडिया बिकाऊ है या मीडिया के लोग बिकाऊ है ??

जो भी हो मीडिया का महत्त्व इसलिए है , क्योंकि मीडिया हमे घटनाओ की सही और सदिर्श्य जानकारी चित्र या लेखन के माध्यम से देती है | लेकिन ये चिंतन का विषय है की कही लोग अब समाचार में जानकारी की जगह सिर्फ मनोरंजन ना खोजे और उन्हें सिर्फ मनोरंजन ही मिले न्यूज़ नहीं ..

2 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तम लिली जी इसी तरह लिखते रहे आपकी सोच अर्थपूर्ण है , आपकी पोस्ट भी महत्वपूर्ण है |

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