मंगलवार, 10 जनवरी 2012

धर्म में विश्वास और कर्म दोनों का ही समावेश,तंत्र-मन्त्र नहीं |


धर्म में विश्वास और कर्म दोनों का ही समावेश होता है | सम्पूर्ण मानव समाज में ' धर्म ' ,चाहे वह विदेशी हो या स्वदेशी न्यूनतम रूप में विधमान होता है |  वैज्ञानिक धार्मिक भावनाओं को तर्क के तराजू में तोलकर उसके अस्तित्व को नकारते है |फलस्वरूप वे इसे अन्धविश्वास ही कहते है | लेकिन अभी भी विशेषकर सरल समाज के लोगो का विश्वास है , की प्राकृतिक  क्रियाओं और मानव प्रयतनों की सफलता ऐसी सत्ताओं के नियंत्रण में है | जो दैनिक अनुभूति से परे है और जिनका हस्तछेप घटनाक्रम को बदल सकता है | ऐसी सत्ताओं के लिए ' देवी ' शब्द का प्रयोग किया जाता है |

अब मैं बताना चाहती हूँ की जादू और धर्म में क्या अंतर है , और इसका सबसे बुरा प्रभाव गरीब और अशिक्षित लोगो पर कैसे पड़ता है | ज्यादातर कुछ पाखंडी लोग धर्म और देवी का नाम लेकर, बीमारी ठीक करने तथा मरे व्यक्ति को पुन: जीवित करने की बात करते है | और भोले-भाले लोग इनकी जाल में फसकर और भी ज्यादा बीमार हो जाते है | और  ये सच है कोई भी तांत्रिक अपनी तंत्र-मन्त्र की शक्ति से किसी मृत व्यक्ति को पुन: जीवित नहीं कर सकता क्योंकि जीवन देने का उसे कोई अधिकार नहीं है, जीवन तो प्रकृति की उस अदभुत शक्ति की देन है जो आजीवन उसका पालन पोषण करती है | पर जादू-टोने का प्रयोग पाखंडी लोग अपनी गलत बातो को मनवाने के लिए करते है |

तो इन सभी बुरी चीजों से दूर रहकर , हमे केवल आस्था और विश्वास की शक्ति से जीवन में सुख और शांति को पाना है | आत्मा के सिद्धांत  से हम कह सकते है की मनुष्यों में आत्माएँ होती है , जो मृत्यु के बाद भी शेष रहती है | अत: हमे जादू -टोने , जैसे पाखंडो से दूर रहकर आस्था और सच्चाई को समझना होगा | देवी या देवता पूजन केवल मन की शांति के लिए हो तथा उससे किसी व्यक्ति को कोई भी नुकसान नहीं पहुँचाया जाये |

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